
आंखरी सलाह - एक पिता की अपने बेटे को
नन्हे से कदम जब चलते न थे, गोदी में लेकर तुम्हे चलाया
हर चोटी सी सिसकी पर तुम्हारी, तुम्हे लोरी सुनाके चुप कराया
कही ठण्ड न लगे तुम्हे, सोचके तुम्हे पलने में सुलाया
फिर उस पालने को खरीदने पर भले ही हमने अपना बिस्तार गवाया
तुम्हारी होठों पर हसीं लाने के लिए, ख़ुद को बन्दर जोकर सब कुछ बनाया
ख़ुद दो-दो दिन भूके रहकर भी, तुम्हे दिन में चार-चार बार खिलाया
खुदके कपड़ो की परवाह न की, तुम्हे हर बार नया वस्त्र दिलवाया
ख़ुद टूटी हुयी चपल पहनकर भी तुम्हे विदेशी जूता दिलवाया
तुम्हारी सपनो की खातिर अपनी हेसियत भूल गए
अन्तराष्ट्रीय स्कूल में तुम्हारा दाखिला करवाया
ओवेर्तिमे करके हो या कर्ज लेके, तुम्हे तुम्हारे दोस्तों के बराबर होने का एहसास दिलाया
थक हार कर घर आता था पर तुम्हारा घोड़ा बनना नही भुला
तुम मुझ पर चद्लर ल्हुस होते, मैं तुम्हारी खुसी में खुस था
आज तुम बड़े हो गए हो, एक कामयाब इंसान
अच्छी नौकरी, अच्छा वेतन और अच्छा मकान
तुम्हे घर में हर चीज नई लानी हैं
नई टीवी, नया चूल्हा और नया इंसान
मैं बुदा हो चला हूँ, सो हुयी हैं तेरी माँ
हमारे लिए तुने जरूर कुछ सोचा होगा, बहुत सारे वृद्ध आश्रम का पता लिया होगा
डोनेशन की राशि तैयार कर रहा होगा
हमे वृद्ध आश्रम भेजके तू तो हमे भूल जायेगा
पर हम तुझे नही भूलेंगे, आख़िर हमारा अंश था तू, हमारा वंश
हमे वृद्ध आश्रम भेजके तू अपनी दुनिया में खुस रहना
अपने बच्चों को अच्छी सिक्षा, अच्छे संस्कार देना
हमसे तो कोई कमी रह गई होगी , तू उन्हें सही रास्ता सही बूढी देना!!!!!
कहते हैं की दुनिया में हर इंसान के अपने विचार होते हैं और उन्हें शब्दों में ढलने की प्रतिभा भी हर व्यक्ति में होती हैं। पर इंसान फिर भी उस समय की प्रतीक्षा करता हैं जब उसे कोई प्रेरणा दे। मुझे अपनी प्रेरणा मिली एक वृद्ध आश्रम से। बचपन से मैंने कई बार सुना था, की वृद्ध आश्रम नाम का कोई जगह होती हैं, जहाँ वृद्ध लोग रहते हैं। मुझे हमेशा लगता था वे लोग कितने खुस रहते होंगे, अपने दोस्तों के साथ। लेकिन एक बार वृद्ध आश्रम जाकर मेरी सारी सोच बदल गई। हमारा उनसे कोई रिश्ता नही था, पर फिर भी वे लोग हमे देखके कितने खुस हो रहे थे। उनकी वह मासूम सी हसीं इतनी प्यारी थी का मन कर रहा था के उनके होठों सेकभी वह हसीं जाए ही न। वापस आने के बाद मैंने बहुत सोचा, की आख़िर क्यूँ हम अपने माँ-बाप को, जिन्होंने हमे बचपन से पाला पोसा और इस लायक बनाया का आज हम दुनिया को बोल सकते हैं का "मेरी ये औकाद है" क्यूँ हम उनका ख़याल नही रख सकते। हम भी छोटे में उन्हें सताते तो थे न, लेकिन उन्होंने हमे अकेला नही चोदा। वह हमसे कुछ नही मांगते, बस दिन में १० मिनट उनसे बात कर लो। क्या हम इस लायक भी नही रह गए?
यह कविता उसी सोच क नतीजा हैं। इसमे होता यह हैं का एक बाप हैं जिसने अपने बेटे को कड़ी महनत करके, बड़ा किया और एक लायाक, काबिल इंसान बनाया। आज वह बेटा बड़ा हो गया हैं, और अब अपने दुनिया बदने के लिए वह अपने माँ-बाप को वृद्ध आश्राम भेजने कातयारी कर रहा हैं। इसी बात पर उसके वृद्ध पिता उससे अपनी आखरी सलाह दे रहे हैं।